सिद्धपीठ मां मनसादेवी
तीर्थनगरी यूं तो कई प्रसिद्ध और सिद्ध मंदिरों का गढ़ वहीं कई सिद्धपीठों को भी अपने शिवालिक और नीलगिरी पहाड़ों को अपने आंचल में समेटे है। इन्हीं सिद्धपीठों में से एक है मां मनसादेवी मंदिर। पहाड़ी ऊंची चोटी पर सदियों से स्थित यह सिद्धपीठ अपने दर पर आने वाले श्रद्धालु भक्तों की मनोकामना पूर्ण करता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। हरिद्वार का मां मंसा देवी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर दूर दूर से भक्त मां के दर्शन करने आते हैं । इसे सिद्ध पीठ माना जाता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी यहाँ पर सच्चे मन से माँ की भक्ति करता है मां मंसा देवी की पूजा अर्चना करता है मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मनसा देवी यानि मन की सभी इच्छा पूरी करने वाली देवी है मां मंसा देवी। मां मंसा देवी के बारे में कई तरह की कथाओं का वर्णन पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि मंसा देवी महर्षि कश्यप की मानस पुत्री थी।
वह भगवान शिव की भी मानस पुत्री कहलाई थी। एक बार महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार देव लोक के साथ ही पृथ्वी पर भी बढ़ गया।
उसके अत्याचारों से पूरे देव लोक में हाहाकार मचा हुआ था। सभी देवता महिषासुर के अत्याचारों से परेशान हो उठे थे। उससे बचने का कोई रास्ता उन्हें नहीं दिखाई दे रहा था। तब देवताओं ने मां भगवती की स्तुति की। मां भगवती दुर्गा ने रूप बदल कर महिषासुर का वध किया और पृथ्वी लोक के साथ ही देवताओं को महिषासुर से मुक्ति दिलाई। महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने इसी स्थान पर हरिद्वार में इसी स्थान पर आकर विश्राम किया था और फिर से अपने स्त्री रूप में आई थी।
मां दुर्गा ने महिषासुर से मुक्ति दिलाकर देवताओं के मन की इच्छा पूरी की थी इस लिए वह मंसा देवी कहलाई। तभी से यहाँ पर उन्हें मां मंसा देवी के रूप में पूजा जाता हैँ।
इसके अलावा उनके बारे में एक और कथा है कि जब समुद्र मंथन के बाद निकले विष को सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान ने शिव ने विष को अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था। तब वह विष के प्रभाव से शिव विचलित हो गये थे। विष की ज्वाला से वह परेशान हो गये थे। तब शिव ने नाग कन्या मंसा देवी को अपने मन में इच्छा रूपी भाव से कन्या को जन्म दिया। तब नाग कन्या मंसा देवी ने शिव के कंठ से सारा विष खींच कर शिव को विष की ज्वाला से मुक्ति दिलाई थी।