मतदान! कौन है? मत का असली हकदार
मतदान अर्थात् जनता के द्वारा अपने मत का प्रयोग अपने एवं अपने क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण के लिए ऐसे इमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ नेता का चुनाव करना, जो नेता अपने क्षेत्र को, विकास की श्रेणी की ओर अग्रसर करें। आपके क्षेत्र की समस्याओं को समझे और उसका निस्तारण करें। अपने क्षेत्र में नजर आने वाली कमियों जैसे- सड़क, बिजली, पानी, स्वाथ्य, इत्यादि को पूरा करें अर्थात् अपने क्षेत्र की बदहाली को दूर कर, क्षेत्र को खुशहाली की तरफ अग्रसित करें युवाओं के लिए रोजगार मुहैया करवाये। हमें ऐसा नेता चुनना है।
यदि हम चुनाव की बात करें तो जोड़-तोड़कर भी सच्चाई हमारे सामाने आती है। उदाहरण के तौर पर अपने राज्य उत्तराखण्ड को लेते हैं। उत्तराखण्ड में 70 विधानसभा सीटें है, जहां से चुनाव के लिए प्रत्याशियों द्वारा कमर कसी जाती है। यदि गिनती पार्टी के अनुसार करें तो कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, उत्तराखण्ड क्रांति दल और एक निर्दलीय के हिसाब से 4 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरते ही हैं। अतः विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड से लगभग 280 प्रत्याशी का चुनाव लड़ना तय होता है।
यह बात सभी के जेहन में होगी की चुनाव है तो प्रचार भी होगा। कम से कम आकलन करते हुये भी अगर हम कहे- कि चुनाव के दस्तावेज प्रकाशित करने, रैली में गाड़ियों का खर्चा करने और अन्य खर्चों को मिलाकर, एक प्रत्याशी अपने प्रचार में अनुमानतयः लगभग 5 लाख रूपये तो खर्च करता ही होगा। अगर आप सारी विधानसभाओं का योगफल देखें तो उत्तराखण्ड में लगभग 14 करोड़ रूपये केवल चुनावी प्रचार में ही खर्च होता हैं।
हालांकि समाचार के अनुसार कम से कम 14 करोड़ रूपये तो चुनावी प्रचार में प्रत्याशियों द्वारा खर्च किये जाते है क्यों ? क्या प्रचार के बिना प्रत्याशी जीत नहीं सकता या प्रचार का खर्चा कम नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि यदि एक नेता की छवि अच्छी है तो अगर उसने अपने पूर्व के कार्यकाल में जनता के अनुरूप कार्य किये हों। तो उसे अपने प्रचार-प्रसार करने की जरूरत नही होती। क्योंकि प्रचार तो काम करता है आपके क्षेत्र में किसने, कितना काम किया है। कितना जनता का साथ दिया है। अगर उसने अपने क्षेत्र के लिए कार्य किये हैं तो उसे अपने आगामी चुनावी सफर के लिए अपने प्रचार में अधिक खर्चा करने की जरूरत है और जनता भी उसी का साथ देती है।