श्रद्धा से कर्यूं कर्म हि च “श्राद्ध”

ऐसु साल 17 सितम्बर बिटि पितर पक्ष सुरु हूंणू च।
पितर पक्षम इन्नि मान्यता च कि पितृपक्ष म हमरा पितरौं की आत्मा धरति क नजीक ऐ जन्दिन। पितृलोक तैं चंद्रलोक से मत्थि मन्यें जांद। इन्नु ब्वलें जान्द कि हमरा पितर कागाक (कौआ) रूपम ऐकी पितरु तैं अर्पित खाणु तैं खान्दन।

भारतीय संस्कृतिम ब्वै-बुबा तैं द्यब्तौं क समान मन्यें जान्द। शास्त्रानुसार ब्वै-बुबा खुस हूंदन त सबि द्यब्ता खुस ह्वे जन्दिन। हिन्दू धर्मांनुसार हरेक आदिम तीन करजु क दगड़ि पैदा हून्द, यीं छन – देव ऋण, ऋषि ऋण, अर पितृ ऋण।

पितरु खुणि जु कर्म करे जन्दिन वैंथै श्राद्ध ब्वलें जान्द। गुरु बृहस्पतिक नुसार खास पक्यूं खाणु, दूद, घ्यू अर सैद जु पितरु क नौं कु बामण तैं दियें जान्द वु श्राद्ध च। ब्रह्मपुराणम त यख तक ब्वलें ग्यायी कि जु श्रद्धा से श्राद्ध करदु वु मनखि अपणा पितरों क दगड़ि ब्रह्मा, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य अग्नि, वायु, विश्वदेव अर मनुष्यगण तैं बि खुस करदु।

शास्त्रोंकनुसार नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, काम्य श्राद्ध, वृद्धि श्राद्ध, सपिंड श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, गोष्ठ श्राद्ध, शुद्धयर्थ श्राद्ध, कर्मांग श्राद्ध, दैविक श्राद्ध हूंदन, या मा सांवत्सरिक श्राद्ध सबि श्राद्धम बटि सबसे श्रेष्ठ श्राद्ध मन्यें जान्द। भविष्य पुराणानुसार भगवान सूर्यदेव न बोलि कि जु मनखि सांवत्सरिक श्राद्ध नीं करदू, वैकी पूजा न त मि स्वीकार करदू अर न हि भगवान विष्ण, न रुद्र अर न ही द्यब्ता ही स्वीकार करदन। इल्लै अदमि तैं हरेक साल पितरू कु श्राद्ध करण चैंद। श्राद्धम तर्पण, भोज, पिंडदान, वस्त्रदान अर दक्षिणा दान करे जाण चैंद।

भारतीय संस्कृतिनुसार पितृपक्षम तर्पण अर श्राद्ध करण मनखि तैं अपणा पितरौं कु आशीर्वाद मिलदु। वैका घौर म सबि राजि-खुसी अर जस बण्यूं रैन्द।

श्राद्ध अर कागा
पुरणि मान्यतानुसार पितृ पक्ष म पितरौं की आत्मा धरति क सबसे जादा नजीक हून्दन। ब्वलें जान्द कि श्राद्ध म जु बि खाणु पितरु तैं अर्पित करे जान्द, वु वै खाणु तैं कागाक (कौवा) रूपम स्वीकार करदन। अर सर्या साल हमतैं राजि-खुसी हर सुखी-सन्ति रैंण कु आशीर्वाद देंदन। मान्यता च पितर पक्ष कु सर्या बगत पितरु कु हूंद अर एक बगत क्वीं बि शुभकार्य नीं करण चैंद।

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