लोकभाषा बचौंण हम सब्यौं जिम्मेबरि च
हर साल 21 फरवरी खूणि विश्व मातृभाषा दिवस मन्यें जान्द। विश्व मातृभाषा दिवस मनौंणा मकसद च अपणि भाषा संस्कृति तैं अगनै बढ़ौंणा। संयुक्त राष्ट्रसंघा क नुसार हर द्वी हप्ता मा एक भाषा खतम हूंणि च। अर दुन्या बिटि एक सर्या संस्कृति अर विरासत हरचि जांद।
पीपुल्स लिंग्युस्टिक सर्वे आफ इंडियक एक रिपोर्टानुसार पिछल पचास सालु मा 780 बोलि वला देसु क 250 भाषा बिल्कुल खतम ह्वेग्यायी, जैमा 22 अधिसूचित भाषा बि छन।
पैदा हूंणा बात जु भाषा बच्चा सिखदू वा भाषा वैकी दूदबोलि (मातृभाषा) ह्वे जान्द। दूद बोलि भाषा तैं सिखणा खूणि स्कुला जरूरत नी प्वड़दि।
उत्तराखण्ड मा आज गढ़वाळि, कुमौनी, जौनसारी, रंवाल्टी, रं, भाषा ब्वलें जान्दिन।
हम खूणि या बौत खुसी बात च कि गढ़वाली अर कुमौनी मा कुछ साहित्यकार अर लिख्वार काम करणा छन अर सकरार ऊतैं प्रोत्साहित बि करणि च। उत्तराखण्ड भाषा संस्थान ऐसु साल 2023 दस साहित्यकारों तैं साहित्य गौरव सम्मान दे। गढ़वाली लोक साहित्य मा दीर्घकालीन साहित्य सेवा वास्ता भजन सिंह ‘सिंह’ पुरस्कार गिरीश सुुंदरियाल तैं दिये ग्यायी। कुमाउनी अर गढ़वाळि भाषा हौरि बोलि अर उप बोलियौं मा दीर्घकालिन साहित्य सेवा वास्ता गोविंद चातक ईनाम डॉ. सुरेश ममगाई तैं दिये ग्यायी।
पर हम खूणि सबसे चितौंण वलि बात या च कि यूनेस्को क एक रिपोर्ट मा जैमा सर्या दुन्या ऊ भाषा सामिल करै ग्यायी जु खतम हूंणा कगार पर छन या फिर जौ भाषा पर खतम हूंणा खतरा च। वैमा उत्तराखण्डा गढ़वाळि अर कुमौनी भाषा तैं असुरक्षित बतै ग्यायी। अर जौनसारी पर खतम हूंणा संकट च।
जै भाषा तैं तीन पीढ़ी क लोग ब्वलदन, वा भाषा सुरक्षित च, अर अगर द्वी पीढ़ि हि ब्वलणि छन त भाषा पर संकट च, अर केवल एक हि पीढ़ि ब्वनी च त भाषा खतम हूंणा लैन मा च।
आज गढ़वाली भाषा सिरफ गीतों की भाषा ही रै ग्यायी, विकासा ये दौर मा हमतैं गढ़वाळि ब्वन्न-बच्यांण मा शर्म लगणि च। हमरि भाषा तबि बचि सकदि जब हम अनड़ा नौन्याळु तैं अपणि भाषा मा बच्याणु सिखौंला। जब बच्चा अपणि भाषा बच्याण सीखि जालु त लिखण अर पढ़णु त सीखि हि जालु। इल्लै हमतैं अपणि दूदबोलि कु बिण्डि से बिण्डि ब्वन्न मा प्रयोग करण चैंद। घौर मा अपिण भाषा मा, लोगुक दगडि गढ़वाळि मा छ्वी बत्था लगौंण चैंद।
भाषा सिखणौं कु सबसे अच्छु माध्यम च घौर अर स्कुल च। जन्नि हमर ब्वे, बुबा न हमतैं हमरि दूदबोलि भाषा सिखै उन्न हमतैं अपणि औंण वलि पीढ़ी तैं बि हमतैं सिखौंण प्वाड़लु या हम सब्यौं जिम्मेदिर च। तबि हमरि दूदबोलि तैं बचै सकदो।
लोकभाषा पर रिंटणु ऐ खतरा कु पैळु कारण च उत्तराखण्ड बिटि पलायन। उत्तराखण्ड बणाणा बाद यखि बिटि सबसे पैलि काम पलायन कु ह्वे, जु आज तक हूंणू च। दूसरू कारण गढ़वाळि अर कुमौनी द्विया भाषा मा हिन्दी अर अंग्रेजी कु जोर च। किलै कि आज हम अपड़ा छ्वटा-छ्वटा नौन्याळु तैं दूदबोलि त दूर बात हिन्दी से जादा अंग्रेजी सिखौंणा छौ।
या बात सै च कि जब क्वीं कटकुटि (मजबूत) भाषा कै समाज बि समाज मा अपणा खूटौं तैं पसरदि त वखकि लोकभाषा खतरा मा पोड़ि जान्द। लोग अपणि भाषा तैं कम अर विदेशी भाषा तैं जादा महत्व देन्दन। यीं कारण च आज हम अपणा नौन्यालु तैं अपणि लोकभाषा नी सिखौंणा छन। लिकैकि हमतैं हिन्दी अर अंग्रेजी क समणि अपणि भाषा नखरि लगणि च। जबकि इन्न कतै नी च। हमरि गढ़वळि शब्द सम्पन भाषा च।
लोकभाषा हमरि सामाजिक अर भाषाई पछ्याण बि च। इल्लै हमतैं अपणि दूदबोलि भाषा तैं नै पीढ़ि तैं पौंच्छणु हमरि पैलि जिम्मेबरि हूंण चैंद। नथर कखि भोळ इन्न न हूयां कि हमरि पछ्याण सिरफ इतगै रै जाली की हम इल्लै गढ़वाली छां कि हम गढ़वाल मा रौंदन या हमारा पितर गढ़वाळि छायीं। इल्लै अपणि संस्कृति पछ्याण अर भाषा तैं बचौंणा हमरि पैलि कोसिस हूंण चैंद।