आपदा, कुदरत कबि बि तरस नी खान्दि

बसगळी आपदा मा उत्तराखण्ड अर हिमालच द्विया प्रदेस दिकदारि म छन। सोशल मीडिया मा रोज फोटो आणि छन जु डरौंणि छन। इन्न मा ज्यूं मा एक सवाल खळाखळ औंणु च कि इन्न कुछ साळु बटि किलै हूंणू च। बरखा त पैलि बि हून्दि छायीं, अब किलै बसग्ळयां मार किलै प्वाड़णि च। प्रदेस म कखि भारी बरखा हूंणि च, त कखि बादल फटणा घटना हूंणि छन, अर इन्नु कुछ हि साळु पैलि बटि हूंणू च।

यांका बाद बि कबि कैल यांक पिछने कु कारण जणणा कोसिस नीं कायी? सिरफ अर सिरफ ग्लोबल वॉर्मिक बोलि कैथैं बखै (बहाना बनाना) नी सकदो। कुछ त हमतैं बि समझण प्वाड़ळु । आज पर्यावरण गरम हूंणू च, जु कि खळाखळ कटेंदा हमर बोण छन, बोण मा आग अर विकास नौं फर आंखा बुजिकि कटेंणा डाळा अर पहाड़ छन।

विकास बौत जरुरी च यांका दगड़ हमतैं या बात बि समझण प्वाड़लि कि पाड़ मा पाड़ै तागत सहणा बि क्वीं क्षमता हूंद। वैथैं ध्यान मा धेरिकि हमतैं पाड़ मा विकास करण प्वाड़ळु। पाड़ कटद्दा हमतैं पाडै़ कटिंग 45 डिग्री. से जादा नी हूंया या कु बि खास ध्यान रखण प्वाडळु। वखि जु पाड़ विकासा नौं फर कट्यूं च, वैमा हमथैं डाळ लगौंण प्वाड़ला जैसे माटु भ्वां मा नीं अयां।

दुसर तरफा सरकार तैं चैंद बल गदनौं क छालौं मा हूंण वला निर्माण कार्य, पांच-सात मंजुळा क होटळ बण्यां छन अर पर्यटन नौं फर हूंण बेढ़ाग काम, रिवर्र व्यू क नौं फर गदनौं क छाळौं मा हूंण वला कामु फर रोक लगौंण प्वाड़लि। हमतैं या बात फर ध्यान देंण चैंद कि अगर हम पर्यावरण दगड़ मा छेड़ि, पर्यावरण तैं कुणा मा धेरिक, पाड़ कु सुभौं क उल्टु विकासै काम करला त खतरा हूंण हि च।

प्रदेस मा हर साल प्राकृतिक आपदा आंद अर हम यीं आपदा तैं कुदरता मार बोलि कि भूळि जन्दन। आपदा खूंणि हमरु उत्तराखण्ड बौत संवेदनशील च। आपदा औंण क बाद हम बौत सर्या दावा त करदो छौ पर जब दुबरा आपदा आन्द त हमरि सर्या पोल खुळ जान्द। सरकार बि बसगाळ झट खतम ह्वै ज्यां, इन्न नीति फर काम करणि रैन्द।

सरकार प्राकृतिक आपदा से निपटणा खूंणि क्वीं ठोस रणनीति बणौंणा खंूणि क्वीं काम नी करदि। सरकार तैं इमानदरिन यां फर ध्यान देंण चैन्द, जै से हर साल आपदा नी हूयां।

या बात सै च कि आपदा मा कैकु क्वीं बस नी च पर या बात बि सै च की अच्छु प्रबंधन से हम आपदा से हूण वला नुकसान तैं कम से कम कै सकदौ।

सवाल यु बि हून्द बल सरकार अर लोग इन्न प्राकृतिक आपदौं से कुछ सीखला अर अपड़ि गलतियौं मा कुछ सुधार कारला या फेर उन्नि की या कुदरती आपदा च समझि की भूळि जाला।

इन्न मा हमतैं यु जरूर याद रखण चैंद कि कुदरत कबि बि तरस नी खान्दी, हम कुदरत क दगड़ मा बिना स्वच्यां छेड़ करला त वु हमतैं कबि माफ नी कारली।

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