दवै बि च ‘लिगड़ा’
पाड़ मा बौत तरौं क वनस्पति हून्दन। जै कु उपयोग यखक रैवासी अपडु शरैल तैं स्वस्थ अर तंदुरुस्त रखणा खूंणि कर्यें जान्द। इनि एक वनस्पति कु नौं च लिंगड़ा।
लिंगुड़ा कु वानस्पतिक नाम डिप्लॉज़िम एस्क्युलेंटम च। लिंगड़ा हिमालयी प्रदेसु मा बोण मा सिलड़ा पाखों , गदेरा क छाल मा जमदु।
लिंगडा मा विटामिन ए, विटामिन बी कॉप्लेक्स, पोटाशियम, कॉपर, आयरन, फैटी एसिड, सोडियम फास्फोरस मैग्नीशियम कैरोटिन अर मिनरल बौत जादा मात्रा मा हूंदन। अज्काल लिगड़ा बजार मा असानी से मिलि जान्द।
हिमालय क पाड़ मा लिगड़ौं क 120 प्रजाति कु पता चलि। लिंगड़ा एक पत्तों कु फर्न च। जु हिमालयी तोक मा मिलण वळु पौधा च,
पुराण जमाना बटि ळोग कुंगळा लिंगड़ौं क भज्जी बण्यें कि खान्द छायीं।
हिमालयन जैव प्रौद्योगिकी संस्थान क एक शोध मा या बात समणि ऐ कि लिंगड़ा मा मधुमेह अर चर्म रोग जन्नि कै बिमारि तैं दूर करणा क गुण छन। शोध मा या बात समणि ऐ कि लिगड़ा चर्म व मधुमेह जनि बिमारि तैं रवक्ण कु काम करदू। लिंगड़ा मधुमेह क मनखियौं खूंणि रामबाण दवै च। लिंगड़ा जिकुड़ि क बिमरि मा बि फैदा करदू।
हमर लिबर मा हूंण वळि दिकदत तैं हि ठीक नी करदु बल आंतौं क बीमरि तैं ठीक करणा मा मदत करदु। हारा कुंगळा लिंगड़ौं क पाणि तैं उमाळि कि खाणा पर झट आराम मिलदु।
लिगड़ा क भुज्जी खाणा से शरैल क हडका, मांसपेशी कटकुटु हुन्दन।
शरैल मा हूंण वला फवाडा, फुंसियौं मा लिंगड़ा क ज्लड़ों तैं पीसिक लगौंणा पर फैदा मिलदु।