बसंत ऋतु मा होरी
बसंत ऋतु मा होरी को अपणों अलग ही महत्व छ। गढ़वाल मा होली का वास्ता होरी शब्द इस्तेमाल होंद।
गढ़वाल मा होरी का गातों मा ब्रज की होली का गीतों को गढ़वालीकरण प्रयुक्त होंद। बिण्डि कै ब्रज भाषा अर खड़ी बोली की पदावली ही इस्तेमाल होंद। भलेई धुन-लय अर कुछ शब्द गढ़वाली का इस्तेमाल होंदन।
गढ़वाल की होरी तैं अज्यूं इनि प्रसिद्धि अर व्यापकता नि मिलि पाई जबकि अनुशासन स्वर-ताल-लय अर हंसी-खुशी मा अपणि अलग शान-पछ्यांण बणैकै प्रचलित छ गढ़वाली हीरो।
गढ़वाल मा तिवार चाहे धार्मिक होवन, राष्ट्रीय-स्थानीय होवन पूरा समर्पण से मनाए जांदन। चाहे विजयादशमी हो बग्वाल हो खिचड़ी संगराद हो, पंचमी, शिवरात्रि हो। होरी गीत व नृत्य को तिवार छ। फागुन की शक्ल सप्तमी बटि होलाष्टक शुरू होदन। सबसे पैलि ज्योतिषी तैं पूछि कै शुभ लग्न-मुहूर्त पर मेल/मोल की फूलों वाल़ी डाली तैं तोडिकै खल्याण या कै पुंगड़ा मा घैंटे जांद। या डाली होलिका की प्रतीक का रूप मा स्थापित करेंद। बाकायदा विधि विधान से पूजा होंद। एक सफेद झण्डा तैं प्रहलाद का रूप मा स्थापित करे जांद बाकी बी पूजा होंद। दुयौं की प्राण-प्रतिष्ठा का बाद गौं का इष्ट देवता भुम्याल क्षेत्रपाल व गणेश की बी पूजा करे जांद।
गढ़वाल मा होरी शुक्ल सप्तमी बटि पूर्णमासी तक खेले जांद। पूर्णमासी की रात ज्योतिषी से होलिका दहन को समय पूछे जांद। रोज गौं का हुल्यार वी जगा पर कट्ठा होंदन। लखड़ा रखदन पूजा करदन अर होरी का गीत लगांदन, नाचदन अर तब औरि जगा जांदन।
हुल्यारों की टोली ढोलक-हारमोनियम अर प्रहलाद का प्रतीक सफेद झण्डा लेकै चलदन। हुल्यारों की वेशभूषा-सफेद चूड़ीदार सुलार, सफेद कुर्ता (कै जमाना मा मिरजई बी होंदी छै) सफेद ट्वप्ला या पगड़ी अर हाथ मा रूमाल होंद।
ढोलक बजाण वालों एक लाइन होरी गीत ब्लवद अर औरि लोग वा तैं दुहरांदा छन। गीत का स्वर-ताल-लय का आधार पर घेरा मा जब हुल्यार ढोलक की थाप दगड़ नचदा छन त हाथों मा पकड्या रूमाल अर पग संचालन होगी-गीतों का बीच-बीच मा होरी है का शब्द वातावरण तैं मस्त बणै देदन। संगुडा बाटौ मा हिट्दा-हिट्दा बी होरी गीत-नृत्य होंद।
हुल्यारों तैं भेंट बी मिलद। या भेंट अन्न या रुप्या-पैसा कुछ बी ह्वे सकद। कै जमाना मा त ब्वक्ट्या बी दिए जादो छयो। हुल्यारों तैं भेंट बी मिलद। या भेंट अन्न या रुप्या-पैसा कुछ बी ह्वै सकद् कै जमाना मा त ब्वक्ट्या बी दिए जांदो छयों। हुल्यार जब कैका घर मा पौंछदन त ए गीत ब्वलदनः-
खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर दर्शन दीजै माई अम्बे झुलती रहो ही। तीलू को तेल, कपास की बाती, जगमग जोत जगे दिन राती। दर्शन दीजै माई अम्बै झूलती रहो ही। हम होरी वाले देवें आशीष, गाएं-बजाएं देवें आशीष
गीतों का विषय कुछ बी ह्वै सकद पर बिण्ड कै कृष्ण-राधा अम्बा, शिव, भवनानी, ब्रह्मा पर केंद्रित गीत ही जादा होंदन।