द्यब्तौं कु च गढ़वाल
उत्तराखण्ड कलैकि यख भौतिक अर आध्यात्मिक द्विया रूपों मा देव संस्कृति प्रचलित छ। यखै गाड-गदिनी, डांडी-कांठी, जड़ी-बूटी, चखुला व गोर सबि देवत्व से भ्वर्यां छन। लोक सीमा से ऐंच जो कुछ बी दिखेंद वो देवत्व छ। द्यब्ता वै खूंणि ब्वल्दन जु अपणा भक्तों तैं ज्ञान अर उज्यालों देकै ऊंकी मनोकामना पूरी कर्दन। यख तीन किसम का देवी द्यब्ता छन। प्राकृतिक, घर्या अर भाव रूप। प्राकृतिक द्यब्तों मा इन्द्र, सूरज, घर्या द्यब्तों मा आग अर भाव रूप का द्यब्तौ मा श्रद्धा अर प्रजापति माने जांदन।
गढ़वाली संस्कृति भारतीय संस्कृति मा एक विशाल संस्कृति छ। यख जगा-जगा मा जो फरक दिखेन्द वो भैर वटि आण वला पर्यटक अर जात्रियों का कारण छ। भौत सी जगों का oलोगों का आण-जांण से यखै मूल संस्कृति प्रभावित ह्वै अर देवभूमि हूणां का कारण असंख्य देवी द्यब्तौं की उपस्थिति से बी यख को जीवन प्रभावित ह्वै।
गढ़वाल मा जन जीवन अर संस्कृति से द्यब्तौ को घनिष्ठ सम्बन्ध छ। जीवन का हर क्षेत्र अर कामकाज से द्यब्ता जुड्यां छन। मनखी का जलम से मृत्यु तक जतगा बी कार्य कलाप छन सब कै ना कै रूप मा द्यब्तौ से सम्बन्धित होन्दन। जन कि कै कुल मा सन्तान नि होन्दी त बंश कु नौ चलाणा वास्ता अपणां इष्ट द्यब्ता की शरण मा जयेन्द। उच्याणों धरै जान्द। उच्याणों मतलब श्रद्धा अर मनोकामना पूरी होणा वास्ता एक भेंट छ। उच्याणों-रूप्या-पैसा, पशु बलि, श्रीफल, बड़ी पूजा, घडे्ला, चांदी का छत्र, द्यब्ता की मूर्ति आदि कै बी रूप मा ह्वै सकद। उच्याणां मा ज्यूंदाल से बी मनौती माने जांद। यखमा बटि मनोकामना पूर्ति का वास्ता द्यब्ता की पूजा की शुरूआत होन्द।
कामना कम वालो मनखि उच्याणों रखिकै संकल्प करदु कि जब मेरी मनोकामना पूरी होली त ई सिरौंण तैं देव कारज मा लगौलो अर मनोकामना पूरी होंण पर निश्चित रूप से देव पूजा करे जांद। जागरी, जात, जज्ञ से द्यब्ता की पूजा होन्द।
गढ़वाली मनोविज्ञान का अनुसार द्यब्ता को मतलब संतान, अन्न, धन व सम्पन्नता देण वालो, अर बीमारी दुःख, भूत-प्रेत से रक्षा करण वालो एक इनो अस्तित्व छ जो दिखेन्दो नी छ, वैकि कृपा को अनुभव होन्द। द्यब्ता अगर पूजनीय होन्द त पूजा कन वालो द्यब्ता का वास्ता मैती होन्द। मैती को मतलब छ प्रेम कन वालो, पालन- पोषण कन वाले़। गढ़वाल का मनखी जज्ञ से द्यब्तों की पूजा करदन, घी, दूध, दही, तेल, हलुवा, रोट से पूजिकै ऊतैं सन्तुष्ट कदरन। यां से खुश ह्वैके द्यब्ता मनोकामना पूरी करदन।
सृष्टि का शुरू मा ब्रह्मजी न जज्ञ कैरिकै अपणि प्रजा की उत्पत्ति करै तब प्रजा तैं बोले कि हमेशा जज्ञ कर्या अर द्यब्तों तैं खुश रख्यां – वो तुमरि उन्नति कारला। तुम द्यब्तौं का भजन कयां वो तुमरि मनोकामना पूरी कारला। ये प्रकार से एक हैंका दगड भलो व्यवहार कैरिकै तुमारो कल्याण होलो। जो द्यब्तो तैं खवाण से पैली खान्दन वो पाप खांदन अर जो जज्ञ बटि बच्यूं खांदन वो सबी पाप से मुक्त होदन। गीता का ये सिद्धान्त को पालन गढ़वाली लोक मानस पूरा विश्वास का दगड करन। नै अन्न की फसल सब से पैली द्यब्तौं तै चढ़ाये जांद।
गौड़ी-भैंसी बियाणा बाद दूध, दही, नौणी, घी सबसे पैली द्यब्तौं तै ही चढ़ाये जान्द। द्यब्ता अर साधक को इनो आपसी तालमेल गढ़वाल मा पारम्परिक रूप से चलणो छ। द्यब्तों की एक खास भक्ति-पूर्ण व्याख्या छ।
गढ़वाल मा द्यब्ता एक रक्षक का रूप मा पूजे जांदन। जो किसम-किसम का कष्ट-रोग-अमंगल से अपणा भक्तों तै बचांदन। गढ़वाल का कुछ द्यब्ता विलक्षण चरित्र वाला छन। वो अनाथ, विधवा अर दुखी जनानी की कै बी विपत्ति दुख अर कष्ट का समय याद कन पर द्यब्ता ऊंकी मदद करदन। द्यब्ता की तरफ बटि दीसा ध्याणी को नौ बी ऊतें दियेंगे।
गढ़वाल मा ग्राम द्यब्ता तैं साक्षी मानिकै छ्वटा-म्वटा झगडौं को निपटारौं बी करै जांन्द। या परम्परा भौत पैले बटि चलणी छ। दोषी आदमी खुशी से डंडकरो देन्द। जुर्मानो सवा रूप्या बटि ग्यारा, इक्कीस, इक्कावन रूप्या तक कुछ बी ह्वे सकद। डंडकरो नि देणै स्थिति मा द्यब्ता द्वारा करेंण वाला अनिष्ट की डैर लगीं रैन्द।
गढ़वाली जन मानस मा विश्वास छ कि भयंकर आफत जनकि अबर्खण, बिन्डि बर्खा, ढांडों, दादरों, खुरपका आदि संकट का वक्त द्यब्ता अन्न-धन व गोरू की रक्षा कर्दन। यख हर शुभ काम द्यब्तो की पूजा से शुरू होन्द। ग्राम द्यब्ता भुम्यां या भुम्याल छ। जमीन सम्बन्धी काम-जनों की मकान लगांणो आदि से पैले भुम्यां की पूजा अर्चना होंद। ब्यौ-बरात मा गणेश का अलावा इष्ट द्यब्ता व अग्नि की पूजा भौत जरूरी होंद।
गढ़वाल़ मा द्यब्ता का रूप मा त्रिशूल, ढुंगा आदि का अलावा पश्वा अर बाकी या बक्या बी होंद। बक्या की वाणी मा द्यब्ता ब्वल्द। सवा रूप्या अर मुट्ठी भर चौंलूं का उच्यांणा पर बक्या दुःखी मनखी तैं दुःख दूर करणा उपाय बतांद। आज बी कतगै जगा जण्यां-मण्यां बक्या छन। द्यब्तौं का अलावा कतगै नौं से देवी बी यख छन। ज्वालपा, दीबा, ज्वालामुखी, झाली माली, काली, चौमुण्डा, नागणी, चंद्रबदनी, नंदा, चौमुख्या, गढ़देवी आदि नौं से शायद ही क्वी अणजाण हो।
सच त यो छ कि गढ़वाल मा द्यब्ता शब्द का कतगै रूप छन, जो अपणा खास काम स्वभाव आदि की वजह से सर्वव्यापक बणि कै पूजे जांदन। द्यब्ता जीवन का हर क्षेत्र से सम्बन्धित होंणा कारण गढ़वाली लोक मानस का शासक व दाता छन। रक्षक व भक्षक छन। भूत, वर्तमान, भविष्य बतांण वाला बी छन त वैद बी छन। ए वास्ता बिना द्यब्तौं का गढ़वाली समाजी क्वी अस्तित्व नी छ। मनखी अर द्यब्तौं का आपसी सम्बन्ध यख दिखे जांदन।
साभार: गढ़वालै धै