लट्ठमार होली : इस होली में रंग नहीं बरसते हैं लट्ठ

नंदगांव के निवासी भी स्वागत के इस तरीके से भली-भांति परिचित होते हैं और वे रंग-गुलाल के साथ-साथ अपने बचाव के लिए बड़ी-सी मजबूत ढाल लेकर आते हैं।

भारत में होली के कई रंग देखने को मिलते हैं। कहीं यह चटख रंगों में दिखती है तो कहीं पर थोड़ा हल्के रंग में, लेकिन हर रूप में यह मन को रंगीन जरूर बनाती है। होली का अनूठा रंग बरसाना में दिखता है। यहां की लट्ठमार होली बहुत प्रसिद्ध है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहां भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। लट्ठमार होली में शामिल होने के लिए देश- विदेश से लाखों लोग यहां पहुंचते हैं। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। होली के समय वहां का माहौल ही अलग और अद्भुत होता है। होली के कुछ दिनों पहले लट्ठमार होली खेली जाती है।

कहा जाता है कि कृष्ण और उनके दोस्त राधा और उनकी सहेलियों को तंग करते थे, जिस पर उन्हें मार पड़ती थी। बरसाना के होली महोत्सव में श्रीकृष्ण के स्थान नंदगांव के निवासी बरसाना की गोपियों के साथ होली खेलने तथा राधारानी जी के मंदिर पर ध्वजारोहण के उद्देश्य से बरसाना में आते हैं। बरसाना में गोपियों द्वारा उनका स्वागत रंग-गुलाल के साथ-साथ लट्ठों द्वारा किया जाता है। नंदगांव के निवासी भी स्वागत के इस तरीके से भली-भांति परिचित होते हैं और वे रंग-गुलाल के साथ-साथ अपने बचाव के लिए बड़ी-सी मजबूत ढाल लेकर आते हैं। होली के इस अनोखे स्वरूप के कारण ही बरसाना की होली को लट्ठमार होली के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। इसके अगले दिन बरसाना की गोपियां नंदगांव में होली के लिए जाती हैं और नंदगांव के निवासी रंग, अबीर, गुलाल से उनको तरह-तरह के रंगों में रंग देते हैं। इस दौरान ढोल की थापों के बीच महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं। हजारों की संख्या में लोग उनपर रंग फेंकते हैं। इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस-हंस कर लाठियां खाते हैं।

आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह के प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती । उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। एक बात और यह कि यहां पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगंधित रहता है। ब्रज क्षेत्र में बरसाना की होली के अलावा एक और होली भी बहुत पसंद है और वह है वृंदावन में होने वाली बांके बिहारी मंदिर की होली। इस होली में रंगों से अलग तरह का ही लगाव देखने को मिलता है।

ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी। इसके कारण होली के रंग यहां पर आध्यात्मिक छटा को समेटे हुए होते हैं। वृंदावन की होली में रंग और प्रेम एक दूसरे के पर्याय बन जाते है और इसमें राधा-कृष्ण की उपस्थिति को गहराई तक महसूस किया जा सकता है। हां, ब्रज की होली के इन रंगों का वास्तविक आनंद वहां जाकर ही उठाया जा सकता है।

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