फूळदेई : चला फुळारी फूळों को सौदा, सौदा फूळ बिरौंळा

फूलदेई उत्तराखण्ड राज्य कु त्योवार च। चैत क मैना सगंरदी यख फूल संगराद (फुल्या संगरांद) भी बुल्ये जांद। ये त्यार कुणी कखी कखी फूलदेई या फूलदेळी भी बुले जांदा।
चैत मैना संगरंद बटि गौं क नौन्याळ बिनसरि मा उठिक बुरांश, फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, अर होरि भि ज्वीं फूल मिल ज्यां तोड़ीकन ल्यान्दन।

फूलुंळ भ्वरि थकुली, या ठुपरी कण्डी थैं लेकैकि गौं मा सब्बि मौं (परिवार) देल्ळियों मा मा फूल डाळि दिन्दी। नौन्याळ गीत ळगन्दन: –

फूल देई …. छम्मा देई, देणी द्वार…….. भर भकार देई।
फूल देई …… छम्मा देई।
फूल देई फूल देइ, जतुकै देला उतुकै सही।

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नौन्याळू थैं गौं क सब्बि मौं कुच्छ ना कुच्छ दिन्दन। कुईं गुड़ मिठै, कुईं चौळ त कुईं रूप्या दिन्दन। बिखौती दिन तक नौन्याळ सुबरे सब्यूं देळी मा फूल डल्दन। बैसखी क दिन सुबेर कट्ठा करयां चौल थैं भिगये जांद अर ब्यखुनि दा सब्बी नौन्याळ अर गौं क सब्बि मवसा कट्ठा ह्वैकैकि चौंळ मा दूध अर भ्यळी़ मिळैकि खीर अर अरसा बणैं कि खंदीन।

फूळदेई से जुड़ी लोककथा:
फूळदेई से एक ळोककथा भि जुड़ी च। कथा इन च कि एक बोण मा बोण नौंनी (वन कन्या) छायी, जैंकु नाम फ्यूंळी छायी। फ्यूंळी बण मा रैंदी छायी अर डाळा-बूटा अर बणु का जानवर विंकी कुटम्दरि अर दोस्त छायीं। फ्यूंळी क कारण हि बण मा खुसी अर मौल्यार छायीं। एक दिन दूर देस बटि एक राजकुमार बण मा आयीं। फ्यूंळी थैं राजकुमार दगड़ी माया ह्वै ग्यायी। अर फ्यूंळी न राजकुमार दगड़ ब्याह करै द्यायी। फ्यूंळी अपड़ि डांडा काठियों थैं छोड़िक राजकुमार दगड़ राजमहळ मा चळि ग्यायी। फ्यूंळी का राजमहळ जांदा ही बण क सबि डाळा बूटा, रौंळा, गदना सुखण बैठग्यीं, त दूसर तरफ राजमहळ मा फ्यूंळी बीमार रैंण बैठ ग्यायी। फ्यूंळी राजकुमार खुंणि कतदा दा ब्वाळ कि मिथैं जंगळा मा छोड़ि दे, पर राजकुमार त्यार नि ह्वै। एक दिन फ्यूंळी मोर्री ग्यायी। मोर्दा-मोर्दा फ्यूंळी न राजकुमार खूंणि ब्वाळ कि मिथैं डाण्डों मा कखि खड्या दें। राजकुमार न फ्यूंळी थैं एक डांडा क टुक्कु मा खड्डै़ं दे। कुछ मैंनों का बाद वख मा एक डाळू जम ग्यायी अर डाळा मा एक फूळ खिळि ग्यायी। जैथैं फ्यूंळी नाम दियें ग्यायी। फ्यूंळी का खिळदा हि दूबरा डांडा काठी हैरि ह्वैग्यीं। गदनों अर रौंळा मा पाणी ब्वगण बैठी ग्यायी। फ्यूंळी का खिल्दा ही डांडी काठियों मा एक दा दुबरा फुळारा ऐ ग्यायी।
ब्वळें जांदा कि तब बटि फ्यूंळी क फूळों से ही गौं कि छोव्टि-छोव्टि नौंनी अपड़ा अर सर्या गौं मा द्वार पूजा करदी अर गौ की राजि खुशी रैंण क प्रार्थना करदी। फूलों से द्वार पूजा ये पूरण रिवाज।

फूलूकु यू त्योवार रूड़ी अर नै साल स्वागत कना रूप मा मनये जांद। बसंत ऋतु आण पर चर्री तरफ खूब उल्यार हुयूं रैंद। फूलदेई त्यौहार प्रकृति अर पर्यावरण से जुड़ाव कु त्योवार छ, जै थैं पूरू उत्तराखण्ड मा मनये जांद।

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