उत्तराखण्ड का अभिशप्त देवालय “हथिया देवाल”

देवभूमि उत्तराखण्ड का एक हथिया देवाल, जिसका नाम एक अभिशप्त देवालय का नाम है। यह पिथौरागढ़ के कस्बे से लगभग 6 किलोमीटर दूर है जो कि ग्राम सभा बल्तिर में स्थित है। पहाड़ी रास्तों और खूबसूरत वादियों के बीच न जाने कितने रहस्य यहां आज भी मौजूद हैं जिन्हें देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है।

‘हथिया देवाल’ नाम के मंदिर के बारे में मान्यता है कि एक आदमी ने एक ही रात में एक ही हाथ से और एक ही पत्थर पर इस मंदिर को बना दिया था। बारहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर को एक ही हाथ से बने होने के कारण ही हथिया देवाल के नाम से जाना जाता है। इस देवालय के विषय में किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था, जो पत्थरों को काट-काट कर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया। अब वह मूर्तिकार एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था, परन्तु गाँव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू कर दिया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा? लगभग सारे गाँव से एक जैसी उलाहना सुन-सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया।

जिसके बाद उसने प्रण किया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौड़ी और अन्य औजारों को लेकर गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पड़ा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी।

अगले दिन प्रातःकाल जब गाँववासी शौच आदि के लिए उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। कौतूहल से सबकी आँखें फटी रह गयीं। सारे गाँववासी वहाँ पर एकत्रित हुये, परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गाँववालों ने गाँव में जाकर उसे ढूँढा और आपस में एक-दूसरे से उसके बारे में पूछा, परन्तु मूर्तिकार के बारे में कुछ भी पता न चल सका. वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोड़कर जा चुका था।

जिसके बाद स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के अंदर उकेरे गए भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है, जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्टकारक भी हो सकता है। इसी के चलते रातों रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में, जिन्हे स्थानीय भाषा में ‘नौला’ कहा जाता है, वहाँ मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता है।

हालांकि भले इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि ये मंदिर एक रात में एक हाथ से बनाया गया है। मगर ये तो साफ है इतिहासकारों की माने तो इस तरह की हस्तशिल्पकला से निर्मित ये भारत का एक मात्र देवालय है। इस मंदिर से जुड़ी एक और बात है जो इसे अन्य मंदिरों से अलग करती है। ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पूजा अर्चना नहीं की जाती। इसका कारण इस मंदिर में शिवलिंग का विपरीत दिशा में होना बताया जाता है। जिसके चलते इस मंदिर को अभिशप्त देवालय के नाम से भी जाना जाता है।

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