केदारनाथ आपदा के 5 साल : कहीं खुशी कहीं गम
UK Dinmaan
2013 को जून 16-17 को मंदाकिनी में आई बाढ़ को पांच साल पूरे हो गये। पांच साल पहले आज ही के दिन केदारनाथ मंदिर को छोड़ आस-पास की सभी इमारतों में मलबा भर गया था। केदारनाथ जाने वाले सभी रास्ते नदी के वेग में बह गए थे और मंदिर के कपाट को बंद करना पड़ा था और यात्रा पूरी तरह ठप पड़ गई थी। तबाही इतनी ज्यादा था कि पहले तो यही समझ नहीं आ पा रहा था कि केदारनाथ के पुनर्निर्माण की शुरुआत कहां से की जाए? आज पांच साल बाद केदारपुरी की सूरत बहुत बदली हुई है।
पांच साल पहले जहां मंदिर इमारतों से घिरा रहता था वहां अब 50 फीट की रास्ता है। कई पुरानी इमारतों को मंदाकिनी ने साफ कर दिया था तो कई को पुनर्निर्माण कार्यों के दौरान तोड़ दिया गया है। इसके अलावा केदारधाम के चारों तरफ सुरक्षा दीवार खड़ी की जा रही है। अगर 2013 जैसी आपदा दोबारा आए तो यह दीवार धाम की रक्षा करेगी।
इन सब बदलावों के बाद बावजूद एक तस्वीर ऐसी भी है जिसे 2013 की आपदा ने ऐसा बदला कि उसमें अब रंग भर पाना नामुमकिन सा है। रामबाड़ा का वजूद खत्म हो गया और इसकी वजह से केदारनाथ धाम तक की यात्रा मुश्किल और लंबी हो गई है।
2013 के बाद ऐसा लग रहा था कि यात्री को केदारनाथ धाम की तरफ रुख करने में सालों लगेंगे लेकिन 5 साल बाद ही रिकॉर्ड तोड़ यात्री भोले के दर्शनों को उमड़ पड़े हैं। एक महीने की अवधि में ही लगभग 6 लाख यात्री केदारनाथ के दर्शन के लिए पहुंच चुके हैं जिससे बद्री केदार मंदिर समीति को लगभग आठ करोड़ की आय हुई है।
केदारधाम पहुंच रहे भक्तों की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं है। केदारपुरी को बसता देख वह बेहद खुश है और यहां बार-बार आने की मनोकामना कर रहे हैं। लेकिन केदारपुरी में हो रहे बदलावों से हर कोई खुश है ऐसा नहीं है।
तीर्थ पुरोहित कुछ बदलावों से खुश नहीं हैं। श्रीनिवास पोस्ती कहते हैं कि 50 फीट की सड़क बना रहे थे तो उसे गौरीकुंड तक ही बनवा देते। तीर्थ पुरोहित मुआवजे से भी खुश नहीं हैं। वह कहते हैं 350 तीर्थ पुरोहितों में से आधों के परिजनों को 2013 की आपदा में जान गंवानी पड़ी थी। लेकिन उनके परिवार के लिए कुछ नहीं किया गया।
विस्थापितों का दर्द –
बेशक केदारनाथ में कुदरत का कहर बरपा था जिसमें करीब साढ़े पांच हजार लोगों की जान चली गई थी। लेकिन केदारघाटी के बहुत से लोगों के घर-बार भी बर्बाद हो गए थे, इस बात का जिक्र कम ही होता है। सिर्फ देहरादून में ऐसे 200 से ज्यादा ऐसे परिवार विस्थापित होकर रह रहे हैं जिनके पुरखों की जमीन मंदाकिनी बहा ले गई और उसके साथ चले गए उनके खेत, उनके घर और उस जमीन में जमी उनकी जड़ें।
16-17 जून, 2013 को मंदाकिनी में आई बाढ़ ने केदारनाथ धाम के साथ ही पूरी केदारघाटी में मंदाकनी नदी के किनारे बसे कई गांवों को तबाह कर दिया था। इस आपदा से केदार घाटी के करीब आठ हजार से ज्यादा लोग घर से बेघर हो गए थे। जो थोड़ा बहुत सक्षम थे वह केदारघाटी को छोड़कर आशियाने और रोजगार की तलाश में प्रदेश के अन्य शहरों में पलायन कर बैठे थे।
ऐसे ही करीब 200 परिवार राजधानी देहरादून में अलग-अलग जगह पर किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं। सरकार ने मदद तो की थी लेकिन सरकारी नीति के अनुसार आपदा पीड़ितों को दी जाने वाली राशि बेहद कम है। ऐसे में जो लोग अपने बूते नई जिंदगी शुरू कर सकते थे वह तो बाहर निकल आए लेकिन बहुत से लोग अब भी जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जूझ रहे हैं।
राज्य के अन्य हिस्सों से हर साल लोग बेहतर जीवन स्तर की उम्मीद में राजधानी देहरादून में आशियाना बनाते हैं लेकिन उनके पैतृक गांवों में घर जिंदा रहते हैं, जहां साल में कभी-कभार जाकर वह अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। केदारघाटी के इन लोगों का दर्द वह नहीं समझ सकता जो विस्थापित नहीं है…. जहां पले बढ़े, जहां पुरखों की जड़ें हैं और वहां अब लौटने को कुछ नहीं है।
बहरहाल केदारनाथ में काम हुआ है और इससे यात्रियों की संख्या बढ़ी है। यह ऐसा तथ्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता।